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‘हौथी पीसी छोटे समूह’: ट्रंप प्रशासन के शीर्ष अधिकारियों ने 'गलती से' पत्रकार के साथ यमन युद्ध की योजनाएं साझा की

   व्हाइट हाउस को इस गड़बड़ी पर आलोचना का सामना करना पड़ रहा है, और सवाल उठ रहे हैं कि ऐसा गलती कैसे हुआ और क्या ऐसा फिर से हो सकता है। ट्रंप प्रशासन ने एक चौंकाने वाली गलती की, जब उसने गलती से पत्रकार जेफ्री गोल्डबर्ग को यमन में हौथी सशस्त्र समूह पर हमलों के लिए गुप्त अमेरिकी सैन्य योजनाओं के बारे में एक निजी चैट समूह में जोड़ दिया। गोल्डबर्ग, जो  The Atlantic  के संपादक-इन-चीफ हैं, गलती से "हौथी पीसी छोटे समूह" नामक सिग्नल चैट समूह में शामिल हो गए, जहाँ वरिष्ठ अधिकारियों ने गुप्त सैन्य योजनाओं पर चर्चा की, जिसमें यमन में अमेरिकी हमलों की योजनाएं शामिल थीं। The Guardian  के अनुसार, इसमें शीर्ष अधिकारी शामिल थे, जिनमें उपराष्ट्रपति जे.डी. वांस, रक्षा सचिव पीट हेगसेथ, विदेश मंत्री मार्को रुबियो, और राष्ट्रीय खुफिया निदेशक तुलसी गब्बार्ड शामिल थे, जो सिग्नल ऐप का उपयोग करके अपनी रणनीति समन्वयित कर रहे थे। जबकि सिग्नल एन्क्रिप्टेड है, यह गुप्त जानकारी साझा करने के लिए अनुमोदित नहीं है। गोल्डबर्ग ने इस रिपोर्ट में कहा कि जैसे ही उन्हें पता चला कि वह इस समूह में शामि...

प्रेमानंद जी महाराज: गृहस्थ जीवन और संयास जीवन में से कौन श्रेष्ठ है, प्रेमानंद जी महाराज से जानें


Premanand Ji Maharaj watch video know how to do hymn during married life | गृहस्थ  जीवन में जी रहे व्यक्ति को कैसे करना चाहिए भजन, देखें प्रेमानंद जी महाराज  का ये वीडियो |

प्रेमानंद जी महाराज के अनमोल वचन आपके जीवन को नई दिशा दे सकते हैं। जीवन में सफलता पाने के लिए उनके विचार बहुत प्रेरणादायक हैं। प्रेमानंद जी महाराज एक महान संत और विचारक थे, जो जीवन का सच्चा अर्थ समझाने और बताने का कार्य करते थे। उनके अनमोल वचन जीवन को सुधारने और संतुलन बनाए रखने के मार्गदर्शक होते हैं।

प्रेमानंद जी महाराज के अनुसार गृहस्थ और संयासी जीवन

प्रेमानंद जी महाराज ने कहा है कि जैसे हम अपने दोनों नेत्रों में से कौन श्रेष्ठ है, यह नहीं कह सकते, वैसे ही यह बताना भी मुश्किल है कि गृहस्थ और संयासी में कौन श्रेष्ठ है। उनके अनुसार, दोनों ही समान रूप से श्रेष्ठ हैं। गृहस्थ जीवन से ही संयासी जीवन की शुरुआत होती है। संत महात्मा भी गृहस्थ से पैदा होते हैं, और बाद में विरक्त होते हैं। उनका पालन पोषण भी गृहस्थों से ही होता है।

प्रेमानंद जी महाराज के अनुसार, गृहस्थ जीवन हमारी दाहिनी आंख के समान है। गृहस्थ ही संतों को उपदेश देते हैं, और संत ही गृहस्थों को पाप रहित बनाकर भगवान की प्राप्ति का मार्ग दिखाते हैं। संत हमें सत मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं।

गृहस्थ और संयासी दोनों के महत्व को समझना

प्रेमानंद जी महाराज का मानना था कि गृहस्थ और संयासी दोनों की दृष्टि एक ही है और वह दृष्टि है भगवान। अगर भगवान की प्राप्ति नहीं हुई, तो न तो गृहस्थ, गृहस्थ होते हैं और न ही विरक्त, विरक्त होते हैं। दोनों का स्थान समान है, कोई छोटा-बड़ा नहीं होता। आप संत को बड़ा मानते हैं, उनका सम्मान करते हैं, वहीं संत आपको बड़ा मानते हैं और वे सब में भगवान को देखते हैं।

गृहस्थ और संत का सम्बन्ध

प्रेमानंद जी कहते हैं कि संत भिक्षा लेकर शिक्षा देते हैं, और गृहस्थ भिक्षा देकर संत की सेवा करते हैं। यह दोनों के बीच बराबरी का नाता है। माया में बंधा हुआ जीव संत की सेवा करता है, जबकि संत अपने ज्ञान के द्वारा गृहस्थ की सेवा करते हैं।

गृहस्थ अन्न और वस्त्र के द्वारा संत की सेवा करता है, और संत भजन, तपस्या, साधना के द्वारा गृहस्थ की सेवा करते हैं। दोनों एक-दूसरे के लिए आवश्यक हैं, जैसे हमारी दो आंखें हैं, लेकिन दृष्टि एक ही है। दोनों का लक्ष्य भगवान की प्राप्ति है, और यही उनका सर्वोत्तम उद्देश्य है।

निष्कर्ष:

गृहस्थ और संयासी जीवन दोनों के महत्व को समझना जरूरी है। प्रेमानंद जी महाराज का यही कहना था कि दोनों जीवन का उद्देश्य एक ही है – भगवान की प्राप्ति। इस तरह, संत और गृहस्थ दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं, और एक दूसरे के बिना जीवन अधूरा होता है।

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